पुलिस अफसरों के पर कतर दिए हैं.
उज्जैन। प्रदेश समेत उज्जैन के भी मैदानी पुलिस कर्मियों के लिए अच्छी खबर है. लगातार पुलिस मुख्यालय में इस बात की शिकायत पहुंच रही थी कि वरिष्ठ पुलिस अफसर बिना उनका पक्ष सुने एकतरफा कार्रवाई कर देते हैं. इस तरीके की लगातार आ रही शिकायतों के मद्देनजर पुलिस मुख्यालय ने बड़ा फैसला करते हुए पुलिस अफसरों के पर कतर दिए हैं. अब मुख्यालय के अनुसार अधीनस्थ कर्मचारियों पर कोई भी पुलिस अफसर चाहे वह किसी भी रैंक का क्यों न हो, सीधे तौर पर कार्रवाई (Action) नहीं कर सकेगा. उसे अपने अधीनस्थ अधिकारी- कर्मचारियों का पक्ष सुनना ही पड़ेगा.
मध्य प्रदेश में एक लाख 30 हजार पुलिस फोर्स हैं, जिसमें 70 फीसदी निचले स्तर के अधिकारी व कर्मचारी हैं. पुलिस फोर्स में सबसे ज्यादा कॉन्स्टेबल और हेड कॉन्स्टेबल हैं. फील्ड पर काम करने वाले इनमें मैदानी पुलिसकर्मियों की अक्सर यह शिकायत रहती है कि पुलिस अधिकारी बिना उनका पक्ष सुने कार्रवाई कर देते हैं. ऐसे में उनका मनोबल टूटता है और इसका असर सीधा काम पर पड़ता है. अब पुलिसकर्मियों पर सीधी गाज नहीं गिरेगी. किसी पुलिसकर्मी पर कार्रवाई करने से पहले उनका पक्ष सुना जाएगा. कार्रवाई करने से पहले अधिकारी को कर्मचारी से स्पष्टीकरण, कारण बताओ नोटिस या जवाब लिया जाना अनिवार्य होगा. आरक्षक और प्रधान आरक्षक को अर्दली रूम में बुलाकर उनका पक्ष सुनना होगा. डीजीपी विवेक जौहरी ने प्रदेश की सभी पुलिस इकाइयों को निर्देश जारी किए हैं. डीजीपी विवेक जौहरी ने प्रदेश के सभी एडीजी, आईजी, डीआईजी और सभी पुलिस इकाई को पत्र लिखा है.।
उन्होंने पत्र में कहा है कि मध्य प्रदेश पुलिस रेगुलेशन एवं मध्य प्रदेश सिविल सेवा वर्गीकरण नियंत्रण अपील नियमों में अधीनस्थ शासकीय सेवकों के लिए प्रावधान है. नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों की यह अपेक्षा है कि किसी भी अधिकारी कर्मचारी को दंड दिए जाने के पूर्व उसे अपने पक्ष रखने का अवसर दिया जाए. इस प्रक्रिया में उनका स्पष्टीकरण लिया जाना, कारण बताओ नोटिस जारी कर तामील किया जाना और आरक्षक प्रधान आरक्षक स्तर के कर्मचारियों को सजा के पूर्व अर्दली रूम में बुलाकर सुना जाना चाहिए.सजा देने से पहले किया जाना अनिवार्य होगा ।
इस तरह किसी भी तरीके के उपाय सजा देने से पहले किया जाना अनिवार्य होगा. उन्होंने पत्र में यह भी लिखा कि स्पष्टीकरण प्रस्तुत करना या न करना और कारण बताओ नोटिस का जवाब देना या ना देना संबंधित कर्मचारी का विकल्प है. मध्य प्रदेश पुलिस रेगुलेशन और मध्य प्रदेश सिविल सेवा वर्गीकरण नियंत्रण नियमों के अंतर्गत सजा दिए जाने के पूर्व बचाव का अवसर देने के बाद ही रिकॉर्ड और गुण दोष के आधार पर निर्णय लिया जाना चाहिए.